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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



अनिर्णय, परेशानी, संतुलित, कठिन निर्णय, विकल्प जानना, गतिरोध, परिहार

छठी माता से जुडा हुआ यह कार्ड आपको राजा प्रियव्रत के जैसे अनिर्णय तक पहुंचाएगा। आपको घरेलू परेशानी का सामना करना पड सकता है। संतुलित जीवन के लिए कठिन निर्णय आपको लेने होंगे। सभी प्रकार के विकल्प जानना है। क्योंकि आपको निजी जीवन में गतिरोध का सामना करना पड सकता है। हर एक काम में लोगोंके टालमटोल परिहार का सामना करना पड सकता है।

रिवर्स भविष्य कथन



बेईमान, रिहाई, अनिर्णय, भ्रम, सूचना अधिभार, गतिरोध

सावधान! आपका पाला बेईमान लोगों से जल्द ही पडनेवाला है। कोई जेल में बंद है तो उसकी रिहाई हो जाएगी, जो आपको अशांती देगा। कई बार अनिर्णय की अवस्था में आप पहुंच जाओगे। इस वक्त आप भ्रम की अवस्था से गुजर रहे हो। जानकारी और सूचना अधिभार बढता जा रहा है। बार बार गतिरोध आते रहेंगे किंतु आगे बढते जाना है।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



एक महिला अपने सफेद गाऊन में आंखों पर पट्टी बांधकर नदी के किनारे बैठी है। वह हाथों से क्रॉस में दो तलवारें पकड़े हुए हैं। द्वितिया का चंद्रमा विपरीत स्थिति में है।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


आंखों पर पट्टी बांधकर एक अधेड उम्र महिला दोनों हाथों में तलवार उठाकर कुछ अनुष्ठान कर रही है। वह लाल साड़ी में हैं। वह बाघ की खाल पर बैठी है। उसने जमुना नदी के पास एक गुफा में यज्ञ जलाया है। द्वितिया तिथी का उलटा चंद्रमा आसमान में चमक रहा है। नदी शांत है।

वह 64 जोगिनी माता में से चामुंडा जोगनिया माता हैं। चामुंडा मां काली का अवतार है। वह छठ माता की भक्त थीं। चामुंडा मां छठ माता का आशीर्वाद पाने के लिए अनुष्ठान कर रही हैं।

राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी दुखी थे क्योंकि वे माता-पिता नहीं बन पा रहे थे।

इसलिए राजा ने महर्षि कश्यप को पुत्र कामेष्टी यज्ञ करने के लिए बुलाया। अनुष्ठानों के कारण रानी गर्भवती थी, लेकिन दुर्भाग्य से, उसने एक मृत बच्चे को जन्म दिया। इसलिए राजा ने नदी में कूदकर आत्महत्या करने का फैसला किया। उस समय सुन्दर देवि प्रकट हुई। वह देवी षष्ठी (छट) थीं। उसने राजा से उसकी पूजा करने और गरीबों को अनाज दान करने के लिए कहा।

राजा और रानी ने षष्ठी (छट) माता की आज्ञा का पालन किया और उन्हें आशीर्वाद स्वरूप एक बालक की प्राप्ती हुई।

उसी दिन से उत्तर भारत में छटी माँ की पूजा नदी, तालाब या समुंदर किनारे की जाती है।

महाभारत की द्रौपदी भी छठ माता की भक्त थीं।

(६४ जोगिनी माता, छठ माता की विस्तृत कथा ।)

षष्ठी (छट) माता का पर्व

उत्तर प्रदेश और खासकर बिहार में मनाया जाने वाला ये पर्व बेहद अहम पर्व है जो पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। छठ केवल एक पर्व ही नहीं है बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय-खाय से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है।

छठ पर्व कैसे शुरू हुआ इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं। पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा।

राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है। इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया । मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।

एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

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द मैजिशियन

द हाई प्रिस्टेस

द एम्प्रेस

द एम्परर

द हेरोफंट

द लवर्स

द चैरीओट

द स्ट्रेंग्थ

द हरमिट

द व्हील ऑफ फॉर्चून

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द हैंग्ड मैन

द डेथ

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